रोज़ हटाओ तोड़ो इनको, लौट के फिर आ जाते हैं
ये ख्वाब बड़े कमीने हैं, हर रोज़ हमें तड़पाते हैं
उम्मीद का चश्मा पहन, हर सुबह पार झाँकने की कोशिश
और लौटते वक़्त हमेशा, उसी मलाली को हमसफ़र पाते हैं
हर सांस के साथ ज़िन्दगी, और थकावट देती है
पोरों से रिस-रिस कर हरदम, थोडा और खोते जाते हैं
ख्वाहिशों की कीमत देकर, कुछ क़र्ज़ चुकाने की मजबूरी
आने वाले कल की खातिर, रोज़ अपने आज को बेच आते हैं
हालातों के बाज़ार में रोज़, यहाँ हसरतें नीलाम होती हैं
हर रात ख़्वाबों को फिर, ज़िन्दगी की शर-शैय्या पर पाते हैं
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